भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन भगवान गणेश की प्रतिमाओं का विधि विधान से विसर्जन किया जाता है। गुरुवार 12 सितंबर यानी आज गणेश जी का खुशी के साथ विसर्जन होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हम लोगों को गणपति बप्पा को भी ठीक उसी प्रकार विदा करना चाहिए, जिस प्रकार से किसी यात्रा पर जा रहे अपने प्रियजन को किया जाता है। इस दौरान उनके विसर्जन का शुभ मुहूर्त भी देखना जरुरी है। गणपति बप्पा को शुभ मुहूर्त में ही विसर्जित किया जाना चाहिए।

गणेश चतुर्थी के दिन बप्पा की स्थापना की जाती है, उसके बाद 10 दिनों तक भक्ति भाव से सेवा की जाती है। उनको मोदक का भोग लगाते हैं और दूर्वा अर्पित करते हैं, ताकि अपनी मनपसंद चीजों को पाकर गणपित बप्पा प्रसन्न रहें। साथ ही भक्तों के विघ्न बाधाओं को दूर कर दें, जिससे जीवन में खुशहाली और तरक्की का मार्ग खुले। इसके बाद अनंत चतुर्दशी को धूमधाम से गाजे-बाजे के साथ गणेश जी को विदा किया जाता है।

गणेश विसर्जन के दिन भी प्रतिदिन वाली पूजा और आरती जरूर करें, साथ ही उनको मोदक का भोग लगाएं। इसके बाद विसर्जन पूजा करें। सबसे पहले एक चौड़ा पाटा लें, जिस पर गणेश जी की प्रतिमा रखी जा सके। उसे पाटे को गंगा जल से पवित्र कर लें और उस पर स्वास्तिक बनाएं। फिर पाटे पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाएं, जिससे की पाटा ढक जाए।

इसके पश्चात चार सुपारी पाटे के चार कोनों पर रख दें और गुलाब या लाल पुष्प से पाटे को सजा दें। फिर कुछ लोगों की मदद से गणेश जी को स्थापना वाली जगह से उठाकर पाटे पर विराजमान करा दें।

इसके बाद गणेश जी को पुष्प, अक्षत्, फल, वस्त्र और मोदक उनको अर्पित करें। दक्षिणा स्वरूप कुछ रुपये जरूर रखें। अब आप एक लकड़ी के डंडे में पंच मेवा, चावल, गेहूं आदि की एक पोटली बांध दें। उसमें कुछ रुपये भी डाल दें। ऐसा करने का उद्देश्य यह है कि गणेश जी के रास्ते में कोई कठिनाई या बाधा न आए।

फिर आप प्रतिमा के अनुसार वाहन का चयन करें और विसर्जन के लिए गणपति को किसी तालाब, नदी या बहते जल स्रोत के पास लेकर जाएं। वहां पर वाहन से उनको उतार कर तट पर रखें और विधिपूर्वक आरती करें। इसके बाद गणेश जी से मन ही मन भूलवश हुई गलतियों के लिए माफी मांग लें और अपनी मनोकामनाएं उनके समक्ष प्रकट कर दें।

विघ्नहर्ता, मंगलमूर्ति जैसे नामों से पुकारे जाने वाले गणेश जी को व‍िसर्जित करने से पहले उनको अगले वर्ष भी आने का निमंत्रण दे दीजिए। शास्त्रों के मुताब‍िक, क‍िसी को भी व‍िदाई देते समय उसको दोबारा आने को कहना जरूरी होता है। इससे गणपत‍ि अपने भक्तों से प्रसन्न होते हैं। अनजाने में हुई गलतियों को क्षमा करने के साथ ही उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। इसके बाद सम्मानपूर्वक जयघोष के साथ गणपति को जल में विसर्जित कर दें।