संसार में तीन ऋण प्रधान रूप से कहे गए हैं-देव-ऋण, गुरु-ऋण एवं पितृ-ऋण। इनमें पितृ-ऋण की प्रधानता बताई गई है। यद्यपि पित्र-ऋण से कोई भी उऋण नहीं हो सकता, तथापि पितरों के प्रति श्रद्धा-भाव रखना मनुष्य की उन्नति का कारण होता है। पितृ पक्ष में आप आसानी से श्राद्ध कर सकते हैं, इसकी विधि आपको बता रहे हैं।

श्राद्ध का प्रथम दिन, 14 सितंबर/ First Day of Shradh 2019

शास्त्र की आज्ञानुसार, प्रतिवर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष पितृ-पक्ष के रूप में स्थापित है। इस वर्ष पितृ-पक्ष के प्रथम दिन की श्राद्ध दिनांक- 14 सितंबर दिन शनिवार को पड़ रही है। इस कर्म में श्राद्ध-काल की उपस्थित तिथि का मान होता है, उदयातिथि का नहीं।

इसका कारण यह है कि श्राद्ध-काल दोपहर में होता है। 14 तारीख़ शनिवार को पितृ-पक्ष की प्रतिपदा प्रातः 08:41 बजे लग जाएगी, अतः प्रथम दिन की श्राद्ध उसी दिन मान्य है।

श्राद्ध क्या है/what is Shradh

पितरों के निमित्त मन्त्रों के साथ विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं। शास्त्र में कहा गया है- “ श्र्द्ध्या इदम श्राद्धम।।” अथवा “श्रद्धार्थमिदम श्राद्धम।” इसी कर्म को पितृ-यज्ञ भी कहते हैं, जिसका वर्णन मनु-स्मृति से लेकर धर्मशास्त्रों एवं श्राद्धकल्पलता में भी प्राप्त होता है।

श्राद्ध न करने से होने वाली हानि

यह कर्म अत्यन्त सरल-सुगम होते हुए मानव-जाति के उत्थान में सहायक होता है। श्राद्ध न करने वालों को ज्ञात-अज्ञात अनेक संकटों-कष्टों से गुज़रना पड़ता है। इतना ही नहीं, श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बंधियों को पितृ श्राप देकर दुःखी मन से चले जाते हैं।

श्राद्ध की विधि/ Shradh Vidhi

पितृ-पक्ष में अपने पितरों का ध्यान कर नीचे लिखे मन्त्र से जल में सफ़ेद फूल और काला तिल डालकर 15 दिन नित्य दक्षिण दिशा की ओर मुख करके श्रद्धापूर्वक जल देने से सुख-शान्ति एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है, इसमें किंचित सन्देह नहीं है।

श्राद्ध मन्त्र/ Shradh Mantra

पितृभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।

पितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।

प्रपितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।

पितर: पितरो त्वम तृप्तम भव पित्रिभ्यो नम:।।

जल देने के बाद अन्तरिक्ष की ओर हाथ ऊपर करके प्रणाम करते हुए पितरों की श्रद्धा पूर्वक स्तुति करनी चाहिए।

पितर स्तुति मन्त्र/ Pitar Stuti Mantra

ॐ नमो व:पितरो रसाय नमो व:पितर:शोषाय नमो व:पितरो जीवाय नमो व:पितर:स्वधायै नमो व:पितरो घोराय नमो व:पितर:पितरो नमो नमो मम जलअंजलीमगृहाण पितरो वास आधत।।

अथवा

तृप्यन्तु पितर:सर्वे पितामाता महादय:।

त्वम प्रसन्ना भव इदम ददातु तिलोदकम।।

इस प्रकार पितृ-पक्ष में श्रद्धा पूर्वक मन्त्र-कर्म की प्रधानता होती है। अतः ह्रदय से पितरों का स्मरण कर मन्त्र से जल देकर स्तुति मात्र कर लेने से भी श्राद्ध-कर्म की पूर्णता शास्त्रों में मान्य है।

श्राद्ध का लाभ/ Benefits of Shradh

15 दिन श्रद्धा पूर्वक पितृ-पक्ष में जल देकर स्तुति मात्र से पितरों की असीम कृपा प्राप्त होती है। जो पितरों को नियमित जल देते हैं, उनके वंश की उत्तम वृद्धि होती है। सर्वथा उन्नति एवं समस्त सुख-समृद्धि प्राप्त करने का सबसे सुगम एवं महत्वपूर्ण साधन श्राद्ध-कर्म ही है। श्राद्ध करने वाला पराजित नहीं होता, ग्रह-चक्र का शिकार नहीं होता तथा धन-धान्य एवं उत्तम संस्कारों वाली सन्तान से युक्त होता है।