लखनऊ :अनुच्छेद 370 को खत्म करना बीजेपी के घोषणापत्र का हिस्सा था। ऐसे में आज नहीं तो कल इस दिशा में कदम उठना ही था लेकिन धारा के खिलाफ मायावती का बीजेपी के समर्थन में उतरना लोगों को चौंका गया। जानकारों का कहना है कि दो लोकसभा और यूपी विधानसभा चुनाव में राष्ट्रवाद और ‘देशभक्ति’ की लहर में अपने कोर वोटरों को भी गोता लगाते देख मायावती ने यह फैसला लिया है।

बीएसपी सुप्रीमो अब तुष्टीकरण के आरोपों में अपने हाथ नहीं जलाना चाहती, इसलिए वह आरक्षण और भागीदारी के तर्क का हवाला देकर मोदी सरकार के साथ खड़ी हो गईं। लोकसभा चुनाव के पहले मायावती को उनके समर्थक प्रधानमंत्री के तौर पर पेश कर रहे थे। समाजवादी पार्टी (एसपी) से गठबंधन के बाद यूपी में क्लीन स्वीप की उम्मीदों के चलते मायावती भी मंचों से इस पर ‘हामी’ भर रही थीं लेकिन, सर्जिकल स्ट्राइक और जमीनी योजनाओं की लहर में नतीजे पलट गए।

अंतर इतना रहा कि 2014 में जीरो से बीएसपी 10 सीटों पर आ गई। लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों को सीधे अपील कर तुष्टीकरण के आरोपों में भी माया फंसी थी और चुनाव आयोग ने बैन लगाया था। नतीजों ने साफ कर दिया कि माया की यह अपील उनकी ‘भूल’ थी। अब, लोकसभा चुनाव में मिली संजीवनी के जरिए जब मायावती बीएसपी को फिर खड़ा करने में लगी हैं तो अब वह खुद को किसी एक मुद्दे के चलते कोर वोट बैंक के साथ ही बहुसंख्यक वोट वर्ग की भीड़ से दूर नहीं करना चाहती।

आसान होगा समर्थकों को समझाना!
बीएसपी के एक नेता का कहना है कि देशभक्ति, पाकिस्तान और कश्मीर जैसे मसलों पर आसानी से बीजेपी वोटरों को लुभा ले जाती है। इसके लिए चलते हमारे कोर वोट बैंक में भी काफी सेंध लगी। अनुच्छेद 370 भी ऐसा ही मसला है। इसको हटाने के समर्थन से यूपी में बीएसपी को कोई खास नुकसान नहीं होगा। लेकिन, विरोध कर पार्टी दलित वोट बैंक के साथ ही दूसरे संभावित वोटरों में भी निशाने पर आ सकती है।

तीन तलाक जैसे मसलों पर भी बराबर दूरी!
लोकसभा चुनाव के बाद बीएसपी की रणनीति में बदलाव साफ दिख रहा है। वह केंद्र और प्रदेश सरकार पर बेरोजगारी, अपराध, भ्रष्टाचार जैसे मसलों पर तो हमला कर रही हैं लेकिन सांप्रदायिक मसलों से दूरी बना रखी है। अल्पसंख्यकों के लिए अहम माने जाने वाले तीन तलाक बिल पर भी सदन में चर्चा के दौरान मायावती का एक भी ट्वीट नहीं आया।एसपी परिवार की सीट भी नहीं बचा सकी इसलिए बीएसपी 2022 में खुद विकल्प बनने की ओर है। इसलिए, अपने कोर वोट और गैर अल्पसंख्यक वोट बेस बढ़ाने पर फोकस करना अधिक मुफीद