-राहुल रंजन

जैसे जैसे कोरोना वायरस संकट प्रत्येक गुजरते दिन के साथ भयंकर होता रहा है, हर किसी के दिमाग में एक ही बात चल रही है की “यह सब कब समाप्त होगा?” सही जवाब है- किसी के पास कोई सुराग नहीं है। लेकिन पता नहीं दुनिया के तमाम प्रबुद्धजन यह बताने से क्यों हिचक रहे कि यह दुनिया का अंत नहीं है।

संसार की प्रत्येक प्रणाली जो मानव के सहज अस्तित्व के लिए जिम्मेदार है, “पोस्ट कोविड”, “न्यू नॉर्मल” और “सोशल डिस्टेंसिंग” आदि जैसे कथनों को बेचने में काफी व्यस्त हैं ,मानो कल पूरी तरह से कोविड मुक्त नई दुनिया होगी? सत्य तो यह है कि हमें अभी लंबे समय तक कोरोना के साथ रहने की आदत डालनी होगी।

इन दिनों,सभी सोशल/मास मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर वेबिनार और बहुत सारे छोटे डेटा एवं अंतर्दृष्टि की होड़ लगी हुई है जो मुख्य रूप से मंदी, कम उत्पादन, बिक्री और खपत के “डर” के साथ साथ कोरोना काल के बाद मानव शरीर में नए तंत्रिका तंत्र होने को भी प्रोत्साहित कर रही है.

इस तरह के अंतर्दृष्टि में नया क्या है? यह स्पष्ट है कि जब जनता को लंबी अवधि के लिए लॉकडाउन का एकमात्र विकल्प दिया जाता है,तो उपभोक्तावाद के सभी स्तरों पर “उपभोग/खपत” तो बंद हो ही जाएगी।

यहाँ सवाल यह है कि क्या हमें ऐसी अंतर्दृष्टि / धारणाओं पर विश्वास करने की ज़रूरत है जो “भय” को प्रोत्साहित करती हैं? भारत में “CoVid19 प्रबंधन” के लिए अब तक के सभी शोध और सांख्यिकीय मॉडलिंग निराशाजनक रहे हैं? और यह हमें एक मजबूत संदेश देता है कि जब पूरा पारिस्थितिकी तंत्र अशांत अवस्था से गुजर रहा हो,तो कोई भी शोध या धारणा केवल भ्रमित करने का कार्य ही करेगी।

भारत सरकार की “CoVid19 प्रबंधन टीम” कोरोना वायरस की तरह ही अनूठा है और इन्होने अंततः यह पाया है कि महामारी से लड़ने के लिए रोकथाम ही एकमात्र उपकरण है। महामारी को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन लगाया गया था, लेकिन यह “8pm कठिन फैसले” करने की आदत को भुनाने के लिए एक राजनीतिक अवसरवाद साबित हुआ और इसके परिणामस्वरूप “भय” और “मनुष्यों पर विश्वास की कमी” के रूप में एक और संक्रामक मनोवैज्ञानिक बीमारी उत्पन्न हो गयी। हम कानूनों को निष्क्रिय करके लॉकडाउन को अनलॉक तो कर सकते हैं लेकिन “सोशल डिस्टेंसिंग” को बनाए रखने के डर से जो “समाज में भय और विश्वास की कमी” हुई है इसका इलाज़ ढूंढ़ निकालना एक कठिन कार्य होगा।

यदि मास्क,हाथ की स्वच्छता और शारीरिक दुरी ही “कोवीड-19/CoVid19/कोरोना महामारी” के लिए मुख्य सुरक्षात्मक उपकरण हैं, तो हमें स्थायी रूप से “सोशल डिस्टेंसिंग” शब्द का उपयोग करना बंद कर देना चाहिए अन्यथा मनुष्य,कोवीड-19/CoVid19/कोरोना महामारी से कम,मनुष्यों से अधिक डरेगा और जिसका अर्थव्यवस्था पर निश्चित तौर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ।

हमारे नेतागण और तमाम गणमान्य बुद्धिजीवियों को इस महामारी के दौरान “शारीरिक दुरी” के जगह पर “सामाजिक दुरी” शब्द कैसे अप्रासंगिक है और इसका जो त्रुटिपूर्ण उपयोग किया जा रहा है,के बारे में बड़े पैमाने पर जन संपर्क/जन संचार शुरू करना चाहिए ताकि मनुष्यों के बीच विश्वास क़ायम किया जा सके.

हम, मनुष्य सामाजिक होने के लिए यंत्रस्थ हैं। हम “सामाजिक” होकर भी “शारीरिक दूरी” को बनाए रखते हुए महामारी से आसानी से लड़ सकते हैं। कृपया “सामाजिक दुरी /Social Distancing ” शब्द का डर मत पाले, महामारी कुछ समय में दूर हो जाएगी लेकिन हमें सामाजिक ही रहना है .. !!

मास्क का उपयोग करें,हाथ को साफ़ करते रहे,सार्वजनिक स्थानों पर “शारीरिक दूरी” बनाए और प्रधान चौकीदार के कथनानुसार हमेशा आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रयासरत रहे..!